कुछ महीने पहले अगर मेरे मन में यह विचार आया होता, कि भई क्यों न हिन्दी में एक blog लिखा जाये. तो शायद मैं उपहास, परिहास में इस सोच को चलता करता. लेकिन, अब आप इसको मेरा साहस कहिये या दुस्साहस, पर विक्टर ह्यूगो से उचित माफ़ी मांगते हुए, यह वो आईडिया है जिसका समय अब आ गया है. तो फिर इस डेहरी को लांघने में देरी कैसी.
हुआ यूँ, कि कुछ समय पहले, संयोग से मेरी नज़र बंगलोर के रेसिडेन्सी रोड स्थित क्रासवर्ड के छोटे और नेगलेक्टेड हिस्से पे पड़ी जो, हिन्दी की किताबें रखता है. अब इस कलेक्शन को हिन्दी कि किताबें का संग्रह कहूँ तो जैसे कि अंग्रेजी में कहते हैं, शायद मैथलीशरण गुप्त अपनी 'कब्र' में करवट बदलें. गलत होगा क्यूँकि यहाँ केवल, मोटापा कम करने कि, अंग्रेजी सेल्फ-हेल्प उपन्यासों कि भद्दी ट्रांस्लेशन्स और अध्यात्मिक (याने कि ओशो) किताबें ही थी. पर जैसे कि कीचड़ में कमल होता है और अंधकार के बीच रोशनी, वैसे ही अकस्मात् मेरी नज़र प्रेमचंद के द्वारा लिखी गयी गोदान पर पड़ी. तो मैं उस किताब को बगल में दबाकर ऐसा भागा कि जैसे बच्चा टाफी छीन कर भागे या बन्दर केला.
अब मेरे और प्रेमचंदजी के बीच में जो रिश्ता कायम हुआ उसकी नींव गहरी है. मैं और लेखक दोनो ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के कायस्थ समाज से हैं, और जिस सामाजिक परिवेश का विवरण , प्रेमचंद ने किया है, वह, और भाषा शैली, दोनों ही, मेरे लिए थोड़ी बहुत जानी पहचानी थी. जैसा कि मेरे साथ प्रायः होता है, कुछ नया करने से पहले, prejudices कि एक ऊंची दीवार खड़ी हो जाती है. पहली बार हिन्दी किताब पढ़ रहा हूँ...पता नहीं खत्म कर पाऊँगा के नही. जाने किस बाबा आदम कि ज़माने कि कहानी होगी जिसका relevance शायद अब लुप्त हो चुका हो.
कुछ बीस पच्चीस पन्ने हे पल्टे होंगे कि ये दीवार औंधे मृँह गिर पड़ी. Clandestine अफेयर्स, प्री-मेरिटल सेक्स और अविवाहित माओं के बारे में पढ़ के, मैं हैरान था. मिस मालती जैसा लिबरल minded इन्डीपेंडेंट, स्वाभिमानी और मोडर्न स्त्री का पात्र, शायद ही आपने कभी पढ़ा होगा.
जितने सशक्त पात्र उतनी ही सहज भाषा में लिखे गए इस उपन्यास को पढ़ के एक नए तरह का आनंद आया. मन हुआ कि सड़क पर चल रहे हर दूसरे व्यक्ति को पकड़ कर आदेश दूं कि यह किताब आज ही पढे.जल्द ही वह बच्चा, और टाफी कि लालच में वापस क्रासवर्ड पहुँचा, और पूरा डब्बा चट कर गया. भूख बढ़ी तो अब वो मनोहर श्याम जोशी तक पहुंच गया है. जिनके राईटिंग स्टाइल के नक़ल कि इमानदार कोशिश इस लेख में साफ दिखाई देगी.
Tuesday, 4 December 2007
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3 comments:
dude... take off the sign in shit... i want to add u to google reader and cannot do it. btw... now u have been writing often enough and can come out of hiding!
Wah Wah! Dharmayuga ya Paraag ki yaad aa gayi!
2-3 rochak recommendations hum bhi kar sakte hain. Harivansh rai ji ki aatm-katha, tatha Kanhaiya Lal Nandan (ex-editor of Parag) ki vyangya kathaayen.
Waise Hindi (devnagri) mein likhte kaise hain? App kya istemaal karte hain?
sab google maiya ki kripa hai. use the transliteration feature once and u will be hooked.
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